गब्बर का किरदार तो नहीं इसकी वजह !

अगर पुराने दौर की बात करें तो मुझे याद आता है जब भी कोई बाबा या साधू घरों के बाहर आते थे तो घर वाले उनको सम्मान के साथ अपने दहलीज़ पर बैठा कर उनको चाय –पानी  पूछते थे और बाद में उसी सम्मान के साथ उनको दक्षिणा देकर विदा करते थे.

मेरे जेहन में इतना याद तो है अगर बच्चे जब कोई कहना नहीं मानते थे और अपनी जिद पर अड़े रहते थे तो उनको कहा जाता था चुप हो जा नहीं तो जोगी या बाबा आ जायेगा.शायद शोले में सलीम-जावेद ने यहीं से ये पात्र उठा कर उसमे गब्बर सिंह को फिट कर दिया. भले ही अपनी पिक्चर को बेहतर और एंटरटैनिंग बनाने के लिए सलीम –जावेद ने “ जब कोशों दूर बच्चा रोता है तो माँ कहती है बेटा चुप हो जा नहीं तो गब्बर आ जायेगा से रिप्लेस किया लेकिन उन्हें क्या पता था गब्बर के इस किरदार में वो सारे बाबा एक के बाद एक ऐसे ही फिट होते रहेंगे और आज तस्वीर आपके सामने है

अक्षय कुमार ने जरुर गब्बर की भूमिका को सुधारने का प्रयास किया और गब्बर इस बेक फिल्म बनाई लेकिन उसे क्या मालूम  था वो गब्बर आज भी इन बाबाओं के रूप में इसी समाज में समाज के लोगों को लूट रहा है बस तरीका इस बार वो बिंदास नहीं है.

मुह में तम्बाकू की जगह मीठा जहर भरा है ,बाल जरुर वैसे ही बिखरे हैं जैसे गब्बर के थे बस उनको समय के साथ थोड़ा सा व्यवस्थित किया गया है कानों में कुंडल और वो ताबीज़ आज सोने के गहनों में तब्दील हो चुकी है शोले के उस गब्बर ने तो सिर्फ ठाकुर के हाथ काटे लेकिन ये गब्बर आज अपने दरबार में रह रही कई महिलाओं ,सेवादारों के हाथ काट चुके हैं ताकि इनकी काली करतूत आश्रम से बाहर ना जा सके.

बसंती के डांस को उस गब्बर ने बड़ी ही तहजीब से देखा था लेकिन आज के ये गब्बर हर रोज न जाने किसी न किसी बसंती को नचाते होंगे और फिर ....आज के बाबा करोडपति हैं और करोड़ों की गाड़ियों में घूमते हैं लेकिन तब के बाबा फ़कीर थे.धर्म के नाम पर अक्सर आपने देखा होगा कई बाबा अपने पीछे समाज के अलग अलग तबके के कई लोगों को जोड़ते चले जाते हैं......

 

(नोट: इस कालम के ज़रिये हम समाज में सिर्फ उन बाबाओं के बारे में कटाक्ष करने की कोशिश करेंगे जो धर्म,वशीकरण ,तांत्रिक ,या भविष्यवक्ता बन कर गलत तौर पर मासूम जनता को लुटने का काम कर रहे हैं )

 

इंतज़ार करें अगली कड़ी का साथ में अपनी राय भी आप हमें दे सकते हैं: chaltaafirtaa@gmail.com   

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