हुजूर! ऐसे जीओ तो आपकी भद्द पीट देंगे, जो आपके आदेश के बाद भी जनता को राहत न दे सकें!

बाबा प्रणाम,

जीते रहो बच्चा चलते-फिरते जब यहां तक पहुंच ही गए हो तो यह भी जान लो कि जीओ से प्यास नहीं बुझती!  

ऐं..... बाबा मैं समझा नहीं, बाबा आपकी वाणी में छुपा रहस्य क्या है?

बच्चा रुद्रप्रयाग भगवान शिव की धरती के भरदार इलाके में जनता लंबे अर्से से प्यासी है। जब उत्तराखंड अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन चल रहा था उस वक्त भी भरदार के लोगों से सोचा था कि जब अपना राज्य बनेगा तब पहाड़ी राज्य की पहाड़ी सरकरा जल जंगल जमीन के बारे सहासिक फैसले लेगी। राज्य की संस्कृति उसकी बोली भाषा को बचाएगी दूसरे पर्वतीय राज्यों की तरह अपनी अलग पहचाने बनाने में कामयाब होगी। गांवो में पानी बिजली,यातायात स्कूल अस्पताल जैसी सहुलियतें सर्वसुलभ हो जाएंगी।  लेकिन दुर्भाग्य देखिए उत्तराखंड जैसे 10 पहाड़ी जिलों वाले राज्य को  सत्रह सालों में पहाड़ पर स्थाई राजधानी नहीं मिल सकी।   

लिहाजा धरती का सीना चीरकर फिर आरओ में डालकर पानी पीने वाले भरदार जैसे पहाडी़ इलाके में पानी की तकलीफ को नहीं समझ पाए! हां वोटो की फसल हर चुनाव में लहलहाती रहे इसके लिए भाषणों में पानी की बात होती रही। जबकि जमीन पर पानी के लिए कोहराम मचा रहा। मवेशियों से लेकर इंसानों तक को प्यास बुझाने के लिए मीलों-मील का सफर करने के लिए मजबूर होना पड़ा। 

हालांकि बीच-बीच में जनता के तेवरों को देखते हुए कभी योजना बनी तो कभी बातें हुई ।  साल 2006 में जवाड़ी-रौठिया ग्राम समूह पंपिंग योजना को तत्कालीन सरकार ने स्वीकृति भी दी थी और इसके लिए 1294.64 लाख रुपये की योजना को भी मंजूर किया।  लेकिन कभी जंगलात की जमीन का पेंच फंस गया तो कभी बजट खत्म होने से काम लटकता रहा। सरकारी महकमों के बीच तालमेल न होने के जलते जनता प्यासी रहती गई। 

लेकिन बच्चा सोशल मीडिया के इस दौर में लगता है कि भरदार की जनता सुलगी हुई है। फेसबुक वॉल पर एक अपलो़ड पोस्ट को सरकार देखेगी और उसके मर्म को समझेगी तो डबल इंजन की पूरी ताकत को झोंक सकती है। लेकिन ऐसा होगा नहीं क्योंकि अगर होना होता तो फिर ये सीएम त्रिवेंद्र रावत पर तंज कसती हकीकत को सोशल मीडिया जैसे प्लेटफार्म पर दस्तक नहीं देना पड़ता। 

बच्चा भरदार की जनता पानी के लिए तरस रही है लेकिन सरकार है कि उसे अपनी जुबान की वैल्यू ही पता नहीं है। बच्चा तू भी पढ़ इस पोस्ट को और समझ ले कि पहाड़ी राज्यों के लिए सरकारें कितनी संजीदा हैं।

बेटा काश ये सरकारें बुनियादी तकलीफों पर मरहम लगाने की इमानदारी से कोशिश करती तो न ये पोस्ट अपलोड होती और न ही छप्परफाड़ बहुमत से चुनी सरकार को आंदोलन की चेतावनी मिलती और न ही ये सुनने को मिलता कि, "सरकार जीओ से जनता की प्यास नहीं बुझती"

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