पहाड़ टूटकर ग्लेशियर पर गिरने से आया सैलाब और खत्म कर गया सैकड़ों जिंदगियाँ -वैज्ञानिकों का दावा
ब्यूरो रिपोर्ट
देहारादून: उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटने से आई बाढ़ में कई लोगों की मौतें हो चुकी हैं और काफी जान-माल का नुकसान हुई है। हादसा होने के बाद अब इसके कारणों का पता लगाया जा रहा है कि आखिर यह जलसैलाब किस वजह से आया? वैज्ञानिकों का मानना है कि उत्तराखंड के चमोली जिले में आई बाढ़ का कारण बर्फ की विशाल चट्टान के बरसों तक जमे रहने और पिघलने के कारण उसके कमजोर पड़ने से वहां शायद कमजोर जोन का निर्माण हुआ होगा, जिससे अचानक सैलाब आ गया।
वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान (डब्ल्यूआईएचजी) के वैज्ञानिकों ने शुरुआती तौर पर यह अंदेशा जताया है। उन्होंने कहा कि हिम चट्टान ढहने के दौरान अपने साथ मिट्टी और बर्फ के टीले भी लेकर आई। इस घर्षण से संभवत: गर्मी उत्पन्न हुई, जो बाढ़ आने की वजह बनी होगी। संस्थान के वैज्ञानिकों ने विनाशकारी बाढ़ के कारणों का सुराग हासिल करने के लिए इलाके का हेलीकॉप्टर से सर्वेक्षण किया।
उत्तराखंड में 7 फरवरी को अचानक बाढ़ क्यों और कैसे आई? इसका पता लगाने केा केंद्र सरकार ने पांच वैज्ञानिकों की एक टीम भेजी थी। उसके मुताबिक, एक चोटी जो 'ढीली हो गई' और एक ग्लेशियर जो चट्टान के ऊपर किसी तरह टिका हुआ था, उसकी वजह से आपदा आई। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की टीम मंगलवार को उस साइट पर ट्रेक करके गई और वहां का मुआयना किया। WIHG के डायरेक्टर कलाचंद साईं ने बातचीत में कहा, "हमारे शुरुआती निष्कर्ष के मुताबिक रविवार की घटना रॉक मॉस फेल्योर (चट्टान का फिसलना) और रौंठी ग्लेशियर इलाके में एक हैंगिंग ग्लेशियर (ऐसा ग्लेशियर जो एक चट्टान के बीच में रुक जाता है) का नतीजा है। घटना का मूल दो चोटियों- रौंठी और मृगथूनी के पास था।
वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसे हुआ चमोली मे हादसा
वौज्ञानिक साईं ने कहा, "संभव है कि एक चोटी, भारी और ठोस स्ट्रक्चर, प्राकृतिक कारणों से टूटकर अलग हुआ और अपने नीचे के ग्लेशियर पर गिर गया जो समुद्रतल से करीब 5,600 मीटर की ऊंचाई पर था।" इससे ग्लेशियर के टुकड़े-टुकड़े हो गए और चट्टान के मलबे के साथ मिल गए। इसके बाद चट्टान और बर्फ का वो मिश्रण 37 डिग्री वाली तेज ढलान से 3 किलेामीटर तक नीचे आता रहा और फिर करीब 3,600 मीटर की ऊंचाई पर रौंठी गधेरा धारा से टकराया। जब वह नदी से टकराया तो एक बांध जैसा स्ट्रक्चर बन गया और बर्फबारी की वजह से कुछ समय तक टिका रहा। रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने पिछले साल 28 सितंबर से वहां जमा पानी और उन ऑब्जेक्ट्स की फोटोज लगाई हैं जब वो स्ट्रक्चर वहां नहीं था।बाढ़ से तीन दिन पहले तक, मौसम साफ रहा। इससे जमने और पिघलने का सिलसिला चलता रहा और फिर स्लोप फेल्योर हुआ। मतलब चट्टान और बर्फ का जो मिक्सचर जमा हो गया था, वह पिघला और उस इलाके को चीरता हुआ तपोवन घाटी की तरफ बढ़ गया। रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें चट्टानें, पानी और बर्फ थी। चूंकि यह काफी भरी था इसलिए और हीट जेनेरेट हुई जिससे बर्फ और पिघली तथा सैलाब का आकार बढ़ता चला गया।
एकदम नहीं आया चमोली मे जल प्रलय
चमोली मे क्या हुआ, ये तो काफी हद तक पता चल चुका है मगर वैज्ञानिक अब ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि चोटी आखिर टूटी कैसे? साईं के अनुसार, "हमारा मानना है कि चट्टान जहां से गिरी, वो एक वीक जोन बन चुका था। ऐसा कई सालों में एक बार होता है। यह अचानक होने वाली घटना नहीं है जैसा बादल फटने या 2013 केदारनाथ त्रासदी के समय हुआ था। हमने जो देखा उसे होने में दशकों लगे हैं।" उन्होंने कहा कि भारत के सभी 26 ग्लेशियर्स की लगातार मॉनिटरिंग जरूरी है। इससे में दोबारा ऐसी आपदा से बचने में मदद मिल सकती है। शुरुआत में माना गया था कि बाढ़ ग्लेशियल लेक के आउटबर्स्ट से आई है लेकिन सैटलाइट इमेजरी से पता चला कि लैंडस्लाइड वजह रही होगी।
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