फ्यूचर बाबा का आज का ज्ञान - उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी के आने से बदले सियासी समीकरण

फ्यूचर बाबा के पास अपॉइंटमेंट लेने के बाद उनसे चंद समय में हुई बातों का सार,चलता फिरता के चाहने वालों के लिए

 

 

बाबा बोले - सियासत,गैरों से तो  ठीक है ! अपनों से सियासत, कहीं, पूरी लुटिया में हाथ ना डुबो दे .

चलते फिरते जब बाबा से अपोइंटमेंट लेने के बाद उनके दर्शन का  सौभाग्य मिला तो ,मन को अंदर से बड़ी शांति का अहसास हुआ। धूनी जमाए बाबा को  दंडवत प्रणाम  करते उनके पांवों में बैठ गया ।  थोड़ी देर बाद उन्होंने जैसे ही आंखें खोली, उनसे उत्तराखंड के राजनैतिक भविष्य पर चर्चा का मौका भी मिला.जब मैंने उनसे पूछा ,बाबा ये उत्तराखंड राजनैतिक 2020-21 में किस दिशा में जा रहा है . जबकि चुनाव 2022 में है । राजनैतिक दलों की बयानबाजी, सभाएं देखकर लग रहा नवंबर का महीना तो नहीं ।

 अलखनिरंजन कहते हुए ,बाबा बड़े गंभीर अंदाज़ में बोले ,बच्चा ये उत्तराखंड जिस  दिशा में भी  जा रहा है उसको देखकर ,लगता है पहली बार पिछले 20 सालों में राजनैतिक दल की चूले हिली हुई है ! अलखनिरंजन, कमल का फूल,चार सालों से खिला तो जरुर है लेकिन अपने कुछ विधायकों ,मंत्रियों को “खिल”खिलाने का मौका नहीं दे पाया.जिन कार्यकर्ताओं के बल पर कभी चुनाव जीते थे वही कार्यकर्ता अब अपनी ही पार्टी में जनप्रतिनिधि की  उपेक्षा देखकर अपने बुझे चेहरे आइना में देखकर,अपने पुराने फैसले  पर अफ़सोस जाहिर कर घुट्टी पीकर गम भुलाने की कोशिश कर रहे ,कभी गरिया रहे कभी रो रहे तो कभी भविष्य की प्लानिंग में उलझ कर समय निकाल रहे   हैं ।बाबा बोले ,बच्चा वैसे ,कीचड में खिले कमल की तारीफ़ तो सभी करते थे, लेकिन उसी कमल  से निकले कुछ  नेता पता नहीं क्यूँ अपने कथन,सोच और करनी में कीचड़ क्यूँ लपेट रहे  हैं  और दनादन गालियों का समुंदर या रायता फैला रहे जिसमें  नुकसान कमल का होगा।  इसपर गहन चिंतन,मंथन जरुरी है पर करे कौन, इनके कप्तान रामलीला खेलते खेलते कब राजनैतिक किरदार में रहते,कब रामलीला के किरदार में चले जाते ये खुद नहीं जानते । फिर मंथन करे कौन.

ये कह कर बाबा बोले ,चलें अब धुनी जमाने का समय आ गया है लेकिन तभी मैंने तपाक से कहा बाबा ये तो सब अधूरा हो गया,कमल का ब्याखान तो आप कर चुके हैं लेकिन हाथ का साथ पर भी आप अपने मुख से कुछ कथन कहेंगे .


ये कह कर बाबा घोर सोच में बैठ गए और काफी देर बाद उनका एक कथन आया , बोले अलखनिरंजन, यहां तो बड़े बाबा,ही हाथ से उपर हैं । इनके बड़े बाबा सियासत कर रहे ठीक है लेकिन सियासत अपनों के वजाय गैरों से की जाती शायद यही पाठ पढ़ाते हुए इतने सालों में  इनके बाबा भूल गए ये लगता है। तभी तो चेहरे की किताब,कबूतर पर अक्सर तारीफ़ पडोसी की और कटाक्ष अपनों पर ज्यादा कर रहे . हाथ को अपनों का साथ ही नहीं मिल रहा है अपने ही आपस में नूराकुश्ती कर रहे ,अब बस पहलवानी बाकी है जिसकी सिटी दिल्ली से आये यादव जी के पास है .यहाँ कब कौन किसे धोबी पछाड़ दे या कब सब एक साथ आयें कह नहीं सकते .वैसे साथ की उम्मीद काफी कम है .हाथ के बड़े बाबा अक्सर या तो चेहरे की किताब पर या किसी सार्वजनिक जगह पर ही मिलते ,इनको बवंडर से कैसे निकलना बेहतर आता है भले ही कुछ हवाएं बवंडर में इनकी तरफ से चलती है .इनका कद और इनके चाहने वाले कहते है बड़े बाबा की कहीं पर निगाहें तो कहीं पर निशाना होता है .ये कब क्या सोचे,कब क्या बोले ,कब क्या करें यही जानते है या तो खुद भगवन , लेकिन अब बड़े बाबा ने अपना अंदाजे बयान बदल दिया । अब वो घुमा फिरा कर कहने के बजाय ,सीधे कहने लगे , जो नुकसान हाथ को ना दे। ये कहते हुए बाबा ने  जाने की इजाज़त दी और मुझे जाने के लिए कहा  .

मेरा मन अभी भी संशय में था वो 


एक नयी पार्टी जो झाड़ू लेकर उत्तराखंड की सफाई की बात कहकर आजकल चर्चाओं में है लेकिन बाबा के उठने से मेरे इस सवाल का जवाब कैसे मिलता। मैंने  भी बाबा के आक्रोश के आगे खुद को निडर बनाते हुए  बाबा के चरणों को पकड़ कर कहा, बाबा इसके बारे में भी कुछ ज्ञान अर्जन कीजिये वर्ना में सोच सोच कर कन्फ्यूज्ड ना हो जाऊ .


बाबा के चेहरे पर तनिक मुस्कराहट के साथ अचानक खिलखिलाने की आवाज़ मेरे कानो में सुनाई दी बाबा बोले 20 साल खूब कमल कमल ,हाथ हाथ जनता के बीच इन राजनैतिक दलों ने खेला। अब ये बैचैनी,घबराहट ,नाराजगी ,विकास,विकल्प जैसे शब्द जिन्हें राजनैतिक दल  भूल गए थे , सब आप के आने से अब, कानों में गूंज रहे है। वरना मजाल इनकी, जो इन भूले शब्दों को याद करते। चुनाव के  एक साल पहले अब ये ,अपने अगल बगल झाक रहे हैं. बाबा बोले इन दोनों के नेता भले इस नई झाड़ू पार्टी को कुछ भी कहे , इनका जनाधार जीरो बताएं , लेकिन इस नयी पार्टी ने सबकी चुलें जरूर हिला कर रख दी है ।  इस नयी पार्टी ने अपने कुछ महीनों के कार्यकाल में, भले इन राजनैतिक दलों की नजर में कुछ ना किया है लेकिन  इनकी राजनैतिक विरासत और इनकी सोच को जनता के प्रति बदलने को मजबूर जरुर किया है .बाकी आगे इनका भविष्य  क्या होता है इसके बारे में कहना जल्दबाजी होगी जिसके बारे  में अगली बार ध्यान से उठने के बाद बताऊंगा ये कहते हुए बाबा ने चिलम उठाया ,धुए का गुब्बार छोड़ा .चले गए साधना पर लेकिन इन सबके बीच मुझे आभामंडल में अजीब सी आवाज़  कानों में गूंजती सुनाई दी जो कह रही थी “आप के आ जाने से ”

बाबा से अगली मुलाकात में ,जरूर अगला अपडेट देंगे।

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