तन्ख्वाह देने में टालू रवैया अपनाने वाले मीडिया मालिकों की अब खैर नहीं है!

छोटे शहर के वे मीडिया मुगल सावधान जो अपनी सल्तनत के मुलाजिमों को समय पर न तो छुट्टी देते हैं और न तय तारीख पर तय पगार। तन्ख्वाह देने में टालू रवैया अपनाने वाले मीडिया मालिकों की अब खैर नहीं है। मालिकान की इस नजायज हरकत से परेशान देहरादून के ऐसे पीड़ित मीडियाकर्मियों ने पीएमओ से इसकी शिकायत कर दी है।

दरअसल बहुत मुश्किल है दुनिया का संवरना ये तेरी जुल्मों का पेंचों खम नहीं है। किसी शायर की इसी शायरी के जैसे है छोटे शहरों में मीडिया की दुनिया और उसके मुलाजिम। खासकर उत्तराखंड की बात की जाए तो इलैक्ट्रॉनिक और वेबमीडिया में तो हालात बहुत बदत्तर हैं।

कुछ नामी बड़े इक्का दुक्का संस्थानों को छोड़ दिया जाए तो बाकी की गलियां काम करने वाले मुलाजिमों के लिए गहरी अंधेरी हैं। रिपोर्टिंग करने वाला रिपोर्टर तो घटनाक्रम को कवर करते हुए कम-से कम संबधों की पूंजी तो जमा कर लेता है लेकिन जरा डेस्क पर बैठे मुलाजिमो से पूछिए जिंदगी की दास्तान सुनकर कलेजा कांप जाता है।

अवाम की आवाज को बुलंद करने की कोशिश करते हुए डेस्क के कर्मचारियों की आवाज़ घुट जाती है।

कभी दूसरे पेशा करने वाले जब मौजूदा वक्त की पत्रकारिता पर तंज कसते हुए उन बेचारों को भी छोटे शहरों के चुनिंदा मीडिया मुगलों के साथ या लाइजनिंग से रुतबा हासिल कर चुके नामी रिपोर्ट्स के साथ तौलते हैं तो उन मीडियाकर्मियों के मुख से बरबस ही निकल पड़ता है,जनाब क्रब का हाल मुर्दा ही जानता है।

 न समय पर पगार, न जरूरत के वक्त छुट्टी। फटेहाल जिंदगी हर वक्त फाकाकशी का दौर। मजलूम आवाम की घुटी आवाज को अपने अंदाज में तराशकर बुलंद आवाज़ बनाने की कवायद में जुटे छोटे शहरों के मीडिया संस्थान के डेस्क से जुड़े कर्मचारी बंधुआ मजदूर से ज्यादा कुछ नहीं लगते।

 हालांकि दुनिया को दिखाने के लिए वो रोज साफ कपड़े पहनकर संस्थान में दाखिल होते हैं। लेकिन मजाल क्या कि महीना खत्म होने के बाद सात तारीख से पहले पगार के लिए मालिक से तकाजा कर सकें। हालांकि मालिक के रहमो-करम पर जीते इन शोषित मीडियाकर्मियों ने अब अपने हक की आवाज बुलंद करने के लिए बड़ा कदम उठाया है।

देहरादून के मीडिया गलियारे से खबर है कि लाइजनिंग और दूसरी तिकड़म भिडा कर शहर में अपनी साख बना चुके परजीवी मीडिया मालिकान के खिलाफ शोषित मीडियाकर्मियों ने अपनी आवाज बुलंद की है और पीएमओ से संपर्क साधा है।

बताया जा रहा है कि पीएमओ से उन्हें आश्वासन भी मिला है, ऐसे में माना जा रहा है कि चुनावी घडी में ऐसे मीडिया मालिकान के खिलाफ कोई सर्जिकल स्ट्राइक हो सकती है। यानि अब दूसरे की मेहनत का मेहनताना न देने वाले मीडिया मालिकानों की खैर नहीं है।

सूत्रों की माने तो किसी मीडिया कर्मी की पहल पर पीएमओ ने मामले को बेहद गंभीरता से लिया है और तथाकथित मीडिया हाउसों की अपने स्तर से पड़ताल शुरू कर दी है, ताकि मेहनतकश मीडिया कर्मी खूनपसीना चूषक मीडिया संस्थानों के मालिकों के शोषण से भविष्य में बच सकें।

ऐसे में ये पहल उन मीडिया कर्मियों के लिए बड़ी राहत भरी खबर होगी जिनका परिवार संस्थान मालिकों की समय पर पगार न देने की हरकत से भूखों रहने की कगार पर पहुंच जाता है।    .... हालांकि होगा क्या ये तो वक्त ही बताएगा फिलहाल शोषित मीडिया कर्मियों ने अपनी आपबीती और मन की बात से पीएमओ को वाकिफ करा दिया है। बहरहाल काबिलेगौर बात ये है कि अगर आप भी मीडिया मालिक के सताए हुए मुलाजिम हो और आपकी भी किसी मीडिया संस्थान में पगार रूकी हुई है तो आप भी अपने नौकरी से जुड़े दस्तावेज तैयार रखिए, साथ ही अपनी आपबीती को Chaltaafirtaa@gmail.com पर शेयर कीजिए या मेल कीजिए ।     

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