थराली उपचुनाव के नतीजों ने साबित किया डा धन सिंह रावत का चुनावी कौशल, वरना गुड्डू की जिद बिगाड़ देती मुन्नी का खेल!
बाबा प्रणाम,
चिरंजीव, क्या हाल हैं, सुना है देवभूमि उत्तराखंड की विधानसभा में भाजपा का संख्याबल वहीं हो गया है। थराली उपचुनाव में भाजपा ने अपनी नाक बचा ली है।
हां बाबा सही खबर पहुंची है आप तक, भाजपा की लाज बच गई!
बच्चा अगर भाजपा आखिरी समय में थराली उपचुनाव के लिए चुनाव प्रभारी न बदलती तो भाजपा की मुन्नी देवी का क्या होता। वो तो शुक्र है कि भाजपा ने डा धन सिंह को चुनाव की कमान थमा दी वरना गुड्डू लाल भी थराली के रण में होता और मुमकिन था कि अबीर गुलाल कहीं और उड़ता। हार न जाने किधर होती और फूलों के हार किसके गले में पड़ते।
बच्चा ये बात इसलिए कही जा रही है कि सत्ता पक्ष की उम्मीदवार, सहानुभूति के रथ पर सवार , पूरी सरकारी मशीनरी, विरोधियों के आरोप, सीएम के हेलीकॉप्टर की जांच और सत्ता वालों के वाहनों की जांच न होने के आरोपों के बावजूद जीत का आंकड़ा 2000 तक भी नहीं पहुंचा।
जरा याद करो एन.डी तिवारी की पहली निर्वाचित सरकार और उनका रामनगर से उपचुनाव लड़ना और 32 हजार से ज्यादा वोट हासिल कर विपक्षी दावेदार राम सिंह ए़डवोकेट को को 9693 पर रोक देना। जरा याद करो दूसरी निर्वाचित सरकार 2007-2012 वाले कार्यकाल में जनरल बी.सी.खंडूरी के लिए कांग्रेस विधायक जनरल टीपीएस रावत का कांग्रेस से विश्वासघात करना और धुमाकोट सीट छोड़ना। जनरल खंडूडी का उपचुनाव में 22हजार से ज्यादा वोट लाना जबकि विपक्षी उम्मीदवार कांग्रेस के दिग्गज नेता सुरेंद्र सिंह नेगी को तकरीबन साढे आठ हजार वोट पर रोक देना।
उसके बाद याद करो साल 2012 से 2017 के कांग्रेस सरकार के कार्यकाल को। जब पूर्व सीएम विजय बहुगुणा ने विधानसभा सदस्य बनने के लिए सितारगंज से उपचुनाव लड़ा और 53766 वोट हासिल कर भाजपा के उम्मीदवार और दिग्गज नेता प्रकाश पंत को करारी शिकस्त दी। पंत को सिर्फ 13812 वोट मिले थे जबकि भाजपा के किरण मंडल को 2012 के आम चुनाव में 29280 वोट मिले थे।
बच्चा जरा याद करो अपने बॉस के लिए धारचूला सीट छोड़ने वाले हरीश धामी को और उस सीट पर हरीश रावत का चुनाव लड़ना। दूरस्थ और विषम भौगोलिक परिस्थिति वाली सीट होने के बावजूद पूर्व सीएम हरीश रावत का बीस हजार से ज्यादा मतों से चुनाव जीतना और भाजपा उम्मीदवार बी.डी.जोशी को हराना।
वहीं हरदा के कार्यकाल में हुए हरिद्वार की भगवानपुर सीट पर हुए उपचुनाव में ममता राकेश का कांग्रेस के टिकट से उतरना और बसपा की परंपरागत सीट पर रिकार्डतोड़ तकरीबन 36 हजार मतो से जीतना। ममता राकेश पर कांग्रेस ने उनके पति सुरेंद्र राकेश के निधन से खाली हुई सीट पर दांव खेला था। हालांकि सुरेंद्र राके बसपा के विधायक थे। बहरहाल ममता ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी राजपाल के चुनाव मत रथ को 22296 पर ही रोक दिया था।
बच्चा उपचुनाव में कम वोटों से 2007 से 2012 वाले पीरियड में भाजपा के कुलदीप कुमार भी जीते थे। मुन्ना सिंह चौहान ने लोकसभा चुनाव लड़ने का जिद की और भाजपा से बगावत कर बसपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ बैठे। ऐसे में विकासनगर में भी उपचुनाव हुआ और कांग्रेस के नवप्रभात ने भाजपा के कुलदीप कुमार को जोरदार फाइट दी। कुलदीप को 24934 मत हासिल हुए और नवप्रभात को 24338 वोट। हालांकि सत्ता पर भाजपा काबिज थी।
इस बार थराली चुनाव में भी बच्चा जीत करीबी है। सत्ता के उम्मीदवार का महज 1872 मतों से जीतना बता रहा है कि थराली में नाक कट भी सकती थी। अगर भाजपा अपनी भूल सुधार करते हुए चुनाव प्रभार की जिम्मेदार सूबे के उच्च शिक्षा और सहकारिता मंत्री डा.धनसिंह को न देती। अब लग रहा है कि डा.धन सिंह के कुशल चुनावी प्रबंधन की बदौलत ही थराली सीट भाजपा को मिली है। बच्चा अगर 2017 के आम चुनाव में मोदी लहर के बावजूद 3000 हजार के करीब वोट लाने वाला गुड्डू लाल अगर निर्दलीय लड़ता तो क्या होता जब सत्ता की उम्मीदवार मुन्नी देवी को सहानुभूति की लहर के बावजूद जीत सिर्फ 1872 मतों से मिली है। मोदी लहर में भी मुन्नी देवी के पति स्व. मगनलाल शाह भी 4800 मतों से ही प्रो.जीत राम को हरा पाए थे। यानि इस बार गुड्डू न मानता तो कुछ गड़बड़ हो सकती थी। क्यों बच्चा सही सोचा या गलत अब तू ही सोच!
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