थराली उपचुनाव , जीत हार तय करेगी आगे का सियासी सफर, संदेश यहीं तक नही दूर तलक जाएगा

थराली उपचुनाव के नतीजे 31 मई को आ जाएंगे। ऐेसे में माना जा रहा है कि मिला जनादेश सूबे में आगे के सियासी सफर की दिशा और दशा तय करेगा। बेशक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट पूर्व में गुड्डू लाल के तेवरों को तोड़ने के लिए कह चुके हों कि एक सीट से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। ऊंच-नीच के नतीजों से खुद भाजपा भी वाकिफ है। थराली उपचुनाव का जनादेश कमल को किस मोड़ पर ला खड़ा कर देगा  इसे भाजपा का हाईकमान बखूबी जानता है।

यहीं वजह है कि प्रचंड बहुमत के बावजूद भाजपा ने थराली उपचुनाव में सूबे की पूरी कैबिनेट और अपने सभी विधायक झोंक रखे हैं। अगर थराली उपचुनाव को भाजपा हल्के में लेती तो जाहिर सी बात है कि पहले बद्रीनाथ विधायक महेंद्र भट्ट को प्रभारी बनाने के ऐलान के बाद फिर से बदलाव करते हुए चुनाव प्रबंधन का उस्ताद माने जाने वाले उच्च शिक्षा, सहकारिता और प्रोटोकॉल जैसे अहम मंत्रालयों को संभालने वाले डा धनसिंह रावत को प्रभारी की जिम्मेदारी नहीं दी जाती। ऐसे में  जाहिर है कि थराली के नतीजे भाजपा के लिए क्या अहमियत रखते हैं।   

वहीं कांग्रेस भी इसे हल्के में नहीं ले रही है। हालांकि सत्ता शिखर से महज 11 के आंकड़े पर रुक जाने वाली कांग्रेस अभी तक चुनावी हार की हताशा से नहीं उबर पाई है लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की सक्रियता भाजपा को चैन की सांस नहीं लेने दे रही है। मोदी मैजिक के दौर में दो-दो जगहों से हारने के बावजूद एक्स सीएम हरदा हर मोर्चे पर भाजपा को चुनौती दे रहे हैं। छात्र संघ की राजनीति से लेकर ग्राम पंचायत और लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा के चुनावों में जीत हासिल कर केंद्रीय मंत्री और सूबे के सूबेदार तक जेैसे अहम पदों पर पहुंचे हरदा अपने आपमें ही राजनीति की पाठशाला हैं। एक तरफ सत्ता के सधे हुए समीकरण है तो दूसरी ओर उन समीकरणों को साधने निकले सियासत के उस्ताद।

जाहिर सी बात है कि अगर थराली उपचुनाव महज चुनाव होता तो कोई भी पार्टी लाव लश्कर के साथ देवाल से लेकर घाट तक की धूल न फांक रही होती। लेकिन असल बात ये है कि 2019 के लोकसभा चुनाव की दहलीज पर खड़ी सियासत के लिए थराली से मिले जनादेश का संदेश बहुत दूर तक जाएगा।

थराली उपचुनाव के नतीजे सियासी पार्टियों के लिए न सिर्फ अग्निपरीक्षा है बल्कि बहुत कुछ पाने और बहुत कुछ खोने की भी घड़ी है। लिहाजा हर हाल में पास होना जरूरी है। यूकेडी जैसा दल भी अपने आपको हासिए पर नहीं छोड़ सकता। उसके पास भी थराली उपचुनाव में पाने और खोने के लिए है। फिर कांग्रेस और भाजपा की तो कहने की क्या हैं। यूकेडी अगर तीसरा कोण बनाने में सफल रही तो लोकसभा चुनाव और अगले विधानसभा चुनाव तक पार्टी खुद को मेहनत और लगन से उसी दौर में पहुंचा सकती है जिसकी उसे जरूरत है।  

वहीं कांग्रेस चाहेगी की उसे थराली के रण में जीत मिले ताकि पूरे देश में संदेश पहुंच सके कि मोदी मैजिक खत्म हो गया है ये भी उन्ही लहरों की तरह थी जिनमें आजादी से लेकर अब तक कई चुनावों में देश की जनता बही है। चाहे आपातकाल के बाद विपक्ष की सरकार हो या फिर विपक्ष की नाकामयाबी को भुनाते हुए गरीबी हटाओ के नारे के दम पर इंदिरा राज का आना हो। या फिर इंदिरा की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर हो या फिर बोफोर्स की हाय तोबा मचाकर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता दल की सरकार बनी हो या फिर राम लहर के रथ पर भाजपा का उफान हो। 

कांग्रेस को जीत हासिल हुई तो पार्टी इसे जहां पूरे देश मेंं जबरदस्त तरीके से भुनाएगी। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को उम्रदराज होने के बावजूद आलाकमान नजरअंदाज नहीं कर पाएगा। विधानसभा चुनाव में दो सीट से लडने के बावजूद एक सीट भी बचा न पाने का घाव भी भर जाएगा। हार को बस लहर की हार माना जाएगा। 

यही वजह है कि भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व थराली उपचुनाव को हल्के में नहीं ले रहा है। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और प्रदेश प्रभारी श्याम जाजू का थराली क्षेत्र में रूक कर प्रचार करना साबित कर रहा है कि थराली का जनादेश गले की घंटी है। यश मिला तो फैलेगा विरोधियों का मनोबल टूटेगा। देश की जनता के सामने संदेश जाएगा की मोदी मैजिक कायम है, डबल इंजन बेहतरीन तरीके से काम कर रहा है और जिन राज्यों में नहीं है उन्हें भी ट्राइ करना चाहिए। जबकि अपयश हासिल हुआ तो 2019 के लिए कुछ नए हथियार आजमाने होंगे, जमीन पर भी और जुबां पर भी। 

बहरहाल जनता क्या जनादेश देती है इसका पता 31 मई को चल जाएगा जब नतीजे आएंगे और जीत हार के नतीजों को राष्ट्रीय स्तर पर कैश किया जाएगा।   

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