क्या बनी रहेगी त्रिवेंद्र सरकार के दौर भाजपा में बनाए गए 114 दर्जाधारी पदों की गरिमा?

देहारादून: एक तरफ जहां सूबे मे परिवर्तन के बाद भाजपा मे मची राजनीतिक उथलपूथल अभी तक नहीं थम रही और लगातार पूर्व मुख्यमंत्री को बेगाना समझा जा रहा है वहीं दूसरी तरफ त्रिवेन्द्र सरकार मे बनाए गए भाजपा के दर्जाधारियों पर भी संकट मंडरा रहा है। पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र को भाजपा पार्टी ने बेगाना करके अपनेपन का जो लॉजिक इस्तेमाल किया है उसका जवाब नही। ये बात हम नहीं कह रहे बल्कि हालात बयान कर रहे हैं। बीते रोज़ भाजपा ने सल्ट उपचुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की सूची जारी की जिसमे पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत का नाम श्मिल नहीं था। जैसे जैसे इसकी खबर त्रिवेन्द्र खेमे के अलावा विपक्षी पार्टियों तक पहुंची भाजपा ने देर शाम को आनन फानन मे त्रिवेन्द्र सिंह रावत और विजय बहुगुणा के नामों को सूची मे शामिल कर लिया। और सफाई देते हुए कहा की भुलवश पूर्व मुख्यमंत्रियों के नाम सूची मे प्रकाशित होने से छूट गए थे। यानि अगर इसका विरोध न होता तो गलती से प्रकाशित प्रथम सूची को ही अंतिम समझा जाता?

अब त्रिवेंद्र सरकार के दौर में बनाए गए दर्जाधारियों की कुर्सी जा सकती है। अगर जानकारों की माने तो हाईकमान की तरफ से इन्हें हटाने का ग्रीन सिग्नल मिल चुका है। नई व्यवस्था को लेकर अब मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को अंतिम फैसला लेना है। माना जा रहा कि पार्टी और संगठन के लिए और अधिक समर्पित कार्यकर्ताओं की नई सूची तैयार की जाएगी। त्रिवेंद्र सरकार में 114 भाजपा नेताओं को दायित्व सौंपे गए थे। त्रिवेंद्र रावत की विदाई के साथ ही अब इनकी कुर्सी पर भी संकट खड़ा हो गया है। सूत्रों की माने तो आरएसएस इन्हें हटाने की पैरवी कर रहा है। बीती 26 मार्च को उत्तराखंड प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम के दून के दो दिवसीय दौरे की प्रमुख वजह भी इसे ही बताया जा रहा है। गौतम सीएम तीरथ को हाईकमान का यह संदेश दे चुके हैं। वे सीएम को यह भी सलाह दे गए हैं कि प्रांतीय अध्यक्ष मदन कौशिक और प्रांतीय महामंत्री अजेय कुमार के साथ बैठक कर इस पर जल्द फैसला ले लें। 

सूत्रों ने बताया कि बुधवार को मदन कौशिक और अजेय कुमार ने सीएम तीरथ सिंह रावत से वर्चुअल माध्यम से इस संबंध में बात भी की। हालांकि, गोपन विभाग ने अभी ऐसी किसी भी कसरत से इनकार किया है। सीएम तीरथ के मुताबिक पूर्व में बांटे गए दायित्वों को लेकर संगठन के साथ अभी चर्चा होनी बाकी है। तबीयत ठीक न होने से बात नहीं हो पाई है। जल्द ही दायित्वों की समीक्षा के बाद इस पर फैसला लिया जाएगा। यानि परिवर्तन निश्चित है। सवाल ये भी उठता है की आखिर त्रिवेन्द्र ने सीएम की कुर्सी पर रहते हुए ऐसा कौन सा काम किया है जो भाजपा को इतना नागंवार गुजर रहा है। जबकि त्रिवेन्द्र आरएसएस मे सक्रिय रहने की बदौलत ही सीएम की कुर्सी तक पहुंचे थे लेकिन अब आरएसएस ही पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र द्वारा बनाए गए दर्जाधारियों की कुर्सी गिराने की पैरवी कर रहा है? यानि लोहे को लोहा काट रहा है ? और वर्तमान सीएम लगातार पूर्व सीएम के फैसलों को पलटते रहे हैं और भाजपा पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत को दरकिनार करने मे लगी है। अगर भाजपा मे सब ऐसे ही चलता रहा तो जनता के साथ सहानुभूति से खड़ा विपक्ष इस पर भाजपा को घेर सकता है।

चलता फिरता के लिए तारिक अंसारी की रिपोर्ट

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