लेजर शो का जिन्न, सोशल मीडिया में हो रही सरकार की किरकिरी, उपासना स्थल है पिकनिक स्पॉट नहीं!

देहरादून- बाबा केदार शीतकाल प्रवास के बाद केदार धाम में तय वक्त पर आस्था और सदियों से चली आ रही परंपराओं के हिसाब से केदारधाम में मौजूद अपनी गद्दी पर विराजमान हुए। ताकि ग्रीष्मकाल मे देश-दुनिया के आस्थावान भक्त अपने बाबा केदार के दर्शन कर सकें।  लिहाजा विधि विधान के साथ केदारनाथ धाम के कपाट भक्तों के लिए खुले। 

 लेकिन इस बार कुछ हटकर हुआ. आस्था के आसन पर सत्ता ने दखल दी और आभासी दुनिया में बवाल मच गया।  सत्ता ने अपने हिसाब से सोचा और सनातन आदि अनंत सत्य शिव का धाम केदारनाथ  आस्था का प्रतीक न रहकर महज एक प्रोडक्ट बन कर रह गए और सत्तानशी सल्तनत उसकी मार्केटिंग करने पर तुल गई।

जिसका विरोध हुआ और इतना विरोध हुआ कि स्थानीय विधायक से लेकर तमाम सम्मानित पत्रकारों ने सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर सरकार के इस कारनामे को अपनी कसौटी पर परखा। नतीजा ये हुआ कि सोच और कलम की धार ने निकले शब्दोंं ने सोशल मीडिया पर धमाल मचा दिया।

पत्रकार योगेश भट्ट ने अपनी फेसबुक वाल को अपडेट करते हुए एक लेख लिखा "यह बाबा का दरबार है कोई थियेटर नहीं"      

इस लेख पर फेसबुक यूजर्स ने सरकार के कृत्य पर इतनी प्रतिक्रियाएं दी कि अगर हुजूरे आला खुद पढ़ ले तो मुमकिंन है कि शर्मिंदा हो जांए। चलता-फिरता न्यूज पोर्टल योगश भट्ट के लेख और उस पर आई कुछ चुनिंदा प्रतिक्रियाओं को आपके सामने रख रहा है। अगर आपको यूजर्स की और तीखी प्रतिक्रियाओं को जानने की जिज्ञासा हो तो आप योगश भट्ट जी की फेसबुक वॉल का दीदार कर सकते हैं->

बहरहाल आप भी पढ़िए कपाट खुलने के मौके पर केदारनाथ में हुए लेजर शो पर योगश भट्ट की कलम की धार से निकले शब्द और यूजर्स की प्रतिक्रियाएं   

Yogesh Bhatt

यह बाबा का ‘दरबार’ है कोई ‘थियेटर’ नहीं

बाबा केदार के 'दरबार' में पहले कैलाश खेर का ‘शो’ और इस बार उससे भी आगे निकलकर ‘लेजर लाइट एंड साउंड’ शो । ऐसा लगता है केदारनाथ में ‘किस सरकार का कितना बड़ा शो’ की एक होड़ मची है । होना तो यह चाहिए था कि 2013 से सरकारें सबक लेती, लेकिन आपादा की विभीषिका के बाद तो सरकारों ने केदार धाम को एक सियासी प्रयोगशाला बना डाला है। केदारधाम में कुछ नया करने कुछ अलग करने के फेर में स्थापित मर्यादाएं, परंपराएं और तो और प्रकृति तक ताक पर हैं। जिस तरह केदार में प्रयोग हो रहे हैं, उससे यह साफ है कि सरकारें केदार को समझने में बड़ी ‘चूक’ कर रही हैं । 
आखिर हमारे राजनेता क्यों नहीं समझते कि केदार धाम कोई थियेटर नहीं, कोई सियासी मुद्दा भी नहीं । यह कोई पर्यटक स्थल भी नहीं और न ही कोई पिकनिक का ठिकाना है । यह एक तीर्थ है, साधना स्थल है, करोड़ों भक्तों की आस्था का प्रतीक है । केदार तो प्रकृति है, एक परंपरा है। आधुनिकता और विकास के नाम पर जिसके साथ छेड़छाड़ सीधे विनाश को आमंत्रण है । केदारनाथ में भारी मशीनों की गड़गड़ाहट के साथ बड़े पक्के निर्माण कार्यों को अंजाम दिया गया है, वह भी तब जब बंद कपाट में बाबा ध्यानलीन हों। शिव धाम में परंपरा शिव कथा प्रवचन व श्रवण की है, लेकिन वहां इन दिनों ध्वनि प्रदूषण के साथ लेजर लाइट और साउंड शो के जरिये बाबा की महिमा का बखान हो रहा है। सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है, तर्क दिया जा रहा है कि इससे देश विदेश में केदार की महिमा का प्रचार होगा। आश्चर्य यह है कि सरकार मनमानी कर रही है और चारों ओर सन्नाटा पसरा है । प्रकृति और पर्यावरण के ठेकेदारों से लेकर तर्क देने वाले तमाम वैज्ञानिक तक मौन साधे बैठे हैं । किसी को कोई आपत्ति नहीं, कहीं कोई विरोध नहीं । 
होना तो यह चाहिए था कि आपदा की त्रासदी के बाद सरकारें व्यापक अध्ययन के बाद प्रकृति, पारिस्थतिकी और पर्यावरण के मुताबिक दीर्घकालीन योजना पर काम करती । लेकिन इसके विपरीत सरकारों ने तात्कालिक योजना पर काम करते हुए सिर्फ केदारनाथ पर फोकस किया । अब सरकार केदार के प्रचार के नाम पर नित नये आडंबर कर रही है। कोई पूछे सरकार से कि क्या केदार को किसी प्रचार की जरूरत है । हकीकत यह है कि आपदा की विभीषिका के बाद भी भक्तों का जो सैलाब आज केदार की ओर रुख कर रहा है वह सरकार के किसी शो के चलते नहीं बल्कि श्रद्धा और आस्था के कारण है । सरकार के यह शो तो उस श्रद्धा और आस्था के साथ खिलवाड़ हैं । दरअसल सरकारें केदार को लेकर सही मायने में संवेदनशील रही ही नहीं । सरकारें संवेदनशील होती तो केदार घाटी का पुनर्निमाण होता । केदारनाथ में शो आयोजित करने के बजाय यात्रा मार्ग पर सुविधाओं पर फोकस किया गया होता । 
इस साल की यात्रा तैयारियों को लें, सरकार का पूरा ध्यान सिर्फ केदारनाथ पर है वहां होने वाले ‘शो’ पर है । रास्ते की सुविधाएं हर बार की तरह भगवान भरोसे ही हैं। काश, प्रधानमंत्री खुद केदार में चल रहे ‘लाइट एंड साउंड शो’ के मौके पर मौजूद होते । शायद वह महसूस कर पाते कि केदार में इस तरह के ‘शो’ का कोई औचित्य नहीं । यहां आने वाले भक्तों में कौन ऐसा होगा जो बाबा की महिमा से वाकिफ न हो । सरकारों को यह ‘शो’ दिखाने ही हैं तो उनके लिये दूसरे स्थल हो सकते हैं, गुजरात समेत देश के अन्य स्थानों पर पर्यटक स्थलों पर इन्हें आयोजित किया जा सकता है । लेकिन नहीं यह शो तो खासतौर पर केदार के लिये ही तैयार किया गया जिसमें बाबा केदार के साथ नरेंद्र और त्रिवेंद्र का प्रचार भी होना है । ठीक उसी तर्ज पर जिस तरह कि कैलाश के शो मंस हरीश का प्रचार किया गया । 
इस बार तो कपाट खुलने से पहले ही केदारधाम में धमाल मचा रहा, कई दिनों तक मंदिर में ‘लाइट एंड साउंड शो’ का ट्रायल चलता रहा । आरोप तो यह भी है कि गुजरात की एक एजेंसी द्वारा तैयार किये गए इस ‘शो’ में तमाम तथ्यात्मक त्रुटियां भी हैं। लेकिन आरोपों की किसी को कोई परवाह नहीं । प्रचारित तो था कि इस मौके पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दोनो मौजूद रहेंगे । सरकार ने तैयारियां भी इसी लिहाज से की लेकिन ऐन वक्त पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दोनो ही हाजिर नहीं हो पाए । मुख्यमंत्री तो संभवत: चाहकर भी बाबा के दरबार में नहीं पहुंच पाये । खैर विधिवत कपाट खुल चुके हैं यात्रा जारी है और लाइट एंड साउंड शो को लेकर बहस खड़ी है। सवाल उठ रहा है कि केदारधाम में इसकी इजाजत किसने दी और इसका क्या औचित्य है । आखिर क्यों सरकार और उसका तंत्र आस्था के साथ खिलवाड़ करने पर तुले हैं । कौन है जो सरकार को इस तरह की सलाह देता है ? आदि अनंत शिव के नाम पर मंदिर की दीवारों पर प्रोजेक्टर से ‘लाइट एंड साउंड शो’ आयोजित कर कोई आखिर क्या संदेश देना चाहता है ? सरकार अभी भी वक्त है, बन्द करो केदार में आस्था के साथ खिलवाड़ ।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश भट्ट की फेसबुक वॉल से ) 

यूं तो दर्जनो प्रतिक्रियांए दर्ज हो रही हैं लेकिन हमने सिर्फ तीन प्रतिक्रिया पढ़कर ही लेजर शो का असर भांप लिया. सरकार ने महसूस किया या नहीं बाबा केदार ही जाने! 

Dhanesh Kothari अब एक लेज़र शो केदार घाटी के मौजूदा हालातों पर बनाकर देश को दिखाना चाहिए। हकीकत देश भी तो देखे .....

Kusum Rawat God bless such advisrs...pl don't play with our sentiments

Vidya Dutt Petwal लेजर शो के बजाय केदारनाथ मे पहुचने वाले यातरियो की मूलभूत सुविधाएंजुटाने मे सरकार को ध्यान देना चाहिए था

  • Tags

0 Comments

Leave us a Comment